इंसाफ नहीं है रेपिस्ट से शादी
नीमा शादी के बाद आज पहली बार घर आई है, लेकिन घर पर तो आज भी शादी वाला माहौल है। पंडित जी शाम को होने वाली पूजा की तैयारी में घी, फूल, कुमकुम, दिये के लिए हर 2 मिनट बाद 'यह लाओ वह लाओ' का आलाप कर रहे हैं और नीमा की मां और नानी दौड़-दौड़ के उनकी सारी मांगों को कहते ही पूरा करने के अभियान में जुटी हैं। वहीं दूसरी ओर नीमा के पापा अपने दोस्तों रिश्तेदारों को अपनी बेटी के ससुराल के ठाट-बाट और उनके दामाद के ऊंचे ओहदे का एकदम ऊंचे वाले सुर में बखान कर रहे हैं। दिल की कुंठा को दिल में ही दबा के कुछ पड़ोसी बधाई देने का नाटक भी कर रहे हैं और नीमा के पापा झुक-झुक के धन्यवाद कर रहे हैं।
सब खुश हैं, खिलखिला रहे हैं, हंस रहे हैं। खैर, हंस तो नीमा भी रही है, पर पहले वाली खनक कहीं गायब है। चारों तरफ से सहेलियों से घिरी नीमा इस वक्त एक बनावटी चेहरे, एक बनावटी हंसी के साथ उस ग्रुप का हिस्सा है जिसमें हर एक वाक्य के खत्म होते ही बड़ी जोर-जोर से हंसी का झरना फूट रहा है। लड़कियां उससे जाने कैसे-कैसे सवाल पूछ रही हैं, और जब नीमा कोई जबाब दे नहीं पाती, तो वह खुद ही जवाब बना-बना कर खूब जोर से हंसने लगतीं...पर नीमा की नजरें तो बस या तो दरवाजे पर आ के अटक जाती हैं या फिर जमीन पर गढ़ जाती हैं।
उस रात के बाद से जब भी नीमा के आसपास कोई हंसता तो जैसे कई हजारों चींटियां उसके शरीर पर चलने लगतीं। ये कंगन, चूड़ियां, पायल, कमरबंद सब उसे जहरीले सांप नजर आते जो हर वक्त उसे डंस रहे थे। मन करता कि वह सबसे पूछे कि उसे इन सांपों में लपेटकर वो लोग किस बात की खुशी मना रहे हैं। पापा किस दामाद की तारीफ करते थक नहीं रहे और मां अपनी ही बेटी को हवन में झोंक कर किस पूजा की तैयारियां कर रही है। हाथों में लगी मेंहदी को देखकर उसकी आंखों में खून उतर आता। अचानक एक ही चेहरे पर कई चेहरे उभर आते, 'नीमा शादी कर के नाक कटने से बचा ले हमारी', 'अपनी बहन के बारे मे सोच नीमा, उससे कौन शादी करेगा', 'हरीश डाक्टर है नीमा, उस रात वो शराब के नशे में बहक गया होगा,' 'तेरी तो किस्मत ही चमक गई नीमा,' 'बलात्कार करने के बाद शादी करने वाले कितने लोग होते हैं निम्मो' 'किसी को मालूम चला तो हम मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।'
पर उसे इस सब का कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई और उसका साथ दे या ना दे, सुभाष तो उससे प्यार करता है न, उसे यह सब पता चलेगा तो वह हरीश को मार ही डालेगा, जो भी हुआ इसमें उसकी क्या गलती थी। सुभाष तो कहता है ना कि वह उसका हर हालत में साथ देगा...सुभाष का मेसेज आने से मोबाइल के स्क्रीन पर उभर आई रोशनी उसके दिल तक फैल गई, पर दूसरे ही पल चारों तरफ सिर्फ अंधेरा फैल गया। 'नीमा, मैं तुमसे प्यार तो करता हूं पर अब तुमसे शादी नहीं कर सकता। हरीश से शादी कर लो। हम इज्जतदार लोग हैं। मेरे घरवाले तुम्हें बहू नहीं बना सकते। यह सब मैं तुम्हारी ही भलाई के लिए कह रहा हूं...'
...और फिर शादी का लाल जोड़ा, दुल्हन का श्रृंगार, पंडित के मंत्र, सभी शुद्ध सामग्रियों ने माहौल शुद्ध कर दिया...नीमा भी शुद्ध...अचानक एक बलात्कार पीड़िता अब एक शानदार, इज्जतदार घराने की इज्जतदार बहू बन गई। अब लोग उसे सर झुका के नमस्ते कहते हैं। जैसे ही कोई इन दिनों उसका परिचय डॉक्टर हरीश की पत्नी के रूप में इज्जतदार लोगों के बीच में करवाता है तो फिर चींटियां चलने लगती हैं उसके शरीर में, ऐसा लगता है जैसे एक चश्मा चढ़ गया है उसकी आखों में। एक बहुत ही अजीब सा चश्मा, जिसके अन्दर से ये लोग इन्सान से जानवर में बदलने लगते हैं और जानवर भी ऐसा कि उसकी शक्ल भेड़िये की, खाल गिरगिट की और पंजे भालू के नजर आते।
उसका पति इस समय उसकी सहेलियों से घिरा हुआ है, मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बार-बार अपना चश्मा ठीक करते हुए बात कर रहा है। उसकी हर बात के बाद एक जोर का ठहाका गूंजता है। उसे उस रात का ठहाका सुनाई दे रहा है। उसे लग रहा है जैसे सब उस पर हंस रहे हैं। फिर चींटियां चढ़ रही हैं, फिर सांपों का लिजलिजापन उसे अपने शरीर पर महसूस हो रहा है। हर ठहाके के बाद वह बलात्कारी, जो कि अब उसका पति भी है, अपना हाथ पास खड़ी लड़कियों के कंधे पर रख रहा है। वह हर बात में उन्हें छूने के बहाने ढूंढ रहा है। पर ये सब इन लड़कियों को क्यों नजर नहीं आ रहा है, काश वह इन्हें भी वह चश्मा दे देती जो उसकी आंखों में चढ़ा हुआ है जिसके अन्दर से एक ही पल में यह आदमी से जानवर में बदल जाता है।
उसकी मां मोहल्ले की औरतों के साथ मिलकर मंगल गीत गा रही है, पर उसे सुनाई दे रहा। 'नीमा शादी कर के नाक कटने से बचा ले हमारी', 'अपनी बहन के बारे मे सोच नीमा, उससे कौन शादी करेगा'...ओह्ह्ह्ह... फिर हजारों चींटियां शरीर पर चढ़-उतर रही हैं, फिर ठहाके सुनाई दे रहे हैं, फिर शक्लें बदल रही हैं, इज्जतदार लोग जानवर बन रहे हैं धीरे-धीरे... हम इज्जतदार लोग हैं मेरे घरवाले तुम्हें बहू नहीं बना सकते...हमारी नाक कटने से बचा ले निम्मो...अपनी बहन के बारे में सोच...।
वह दौड़ के अपने कमरे में चले गई। उसका दिल किया कि सबको चीख-चीख कर बताए, सबको वह सब दिखाए जो उसे दिखता है ...जानवर बनते लोग...झूठी इज्जत के पीछे बेआबरू होता चेहरा...एक बलात्कारी से परमेश्वर में तब्दील हुआ उसका पति...वह चाहती है कि वह सब जो उस रात हुआ फिर एक बार हो। फिर एक बार वह हरीश के पास अपने पिता की दवाइयां लेने जाए, फिर एक बार हरीश उसका दुपट्टा खींच ले, फिर एक बार वह उसका हाथ खींचे, पर इस बार वह चुप नहीं रहेगी, वह चिल्लाएगी, वह उसका मुंह नोच लेगी। वह दरवाजा खोलकर भाग जाएगी, पूरी दुनिया के सामने उसे बेपर्दा कर देगी...पूरे शरीर में जैसे बिजली कौंध गई उसके।
उसे लग रहा है जैसे उस एक रात के बाद जिंदगी बेहवा हो गई है। उसके अंदर तिरस्कार भर आया है इस जिंदगी के लिए, वह जिंदगी जिसे लोग बहुत सम्मानित समझ रहे हैं। पेन नहीं मिल रहा....वह सिंदूर से लिखेगी, आखिर इस सिंदूर ने ही तो इन सबका अपमान अपने पीछे छुपा के सम्मान में तब्दील किया है...उसने कमरे की उन चारदिवारियों में सिंदूर से अपनी कहानी लिख डाली जिनके अन्दर उसे महफूज होने का भरोसा दिलाया जाता था, और फिर सो गई...हमेशा के लिए।
Reference: navbharattimes.indiatimes.com